क्या सरयू शापित नदी है। उसमें स्नान करने का पुण्य नहीं मिलता। सरयू की पूजा वर्जित है , आरती वर्जित है।
अयोध्या :- एक सच्चा अनुभव
बात 1998-99 के आसपास की है। मेरे एक अभिन्न और पारिवारिक मित्र ने एक दिन मुझसे कहा कि क्युँ ना कल फैजाबाद मैं अपने परिवार के साथ चलूँ ? हम लोग रास्ते में अपना काम कर लेंगे और फैमिली अयोध्या घूम लेगी , शाम को वापस हो जाएँगे।
हमने कहा हाँ ये ठीक रहेगा और हम अगले दिन तड़के कार से मैं मेरा मित्र उनकी धर्मपत्नी और एक 4 साल की बेटी निकल गये।
6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद अयोध्या के बारे में मेरे मन मे एक उत्सुकता पैदा हुई यद्धपि बाबरी मस्जिद के रहते कभी वहाँ जाने का भी विचार नहीं आया। अकेले जाना खतरनाक था पकड़े जाने पर ना जाने कौन कौन सी पूछताछ होती आने का कारण पूछा जाता फिर धाराएँ लगतीं।
रास्ते में व्यापारिक कार्य करने में विलम्ब हो गया और हम शाम 5 बजे अयोध्या पहुंचे पर चुकिं विध्वन्स की धटना को अधिक दिन नहीं हुए थे तो सुरक्षा चकाचक लम्बी लम्बी बन्दूक लेकर जाने कहां कहां से आए काले गोरे जवान एक एक व्यक्ति को घूर घूर रहे थे वहां आकर लगा कि आना उचित नहीं था कहीं मेरे धर्म की पहचान हो गई तो फिर धारा उपधारा इतनी लगेंगी कि अगला पर्यटन संभव नहीं होगा।
शाम हो गयी थी तो मित्र ने यह निर्णय किया कि अभी "रामलला" का दर्शन कर लें कल सुबह जल्दी उठ कर शेष मंदिर देख लेंगे। मैंने सोचा कि मैं वहाँ जाऊँ या ना जाऊँ ? जिस जगह मस्जिद शहीद कर के मंदिर बना दिया गया वहाँ जाकर मैं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर पाऊँगा या नहीं ? फिर सोचा कि वह स्थान ना देखूं जिसके कारण देश में हजारों हजार जाने गईं तो जाना ही व्यर्थ था।
शाम 7 बजे अन्तिम दर्शन की घोषणा हुई हम सब भी लाइन में लग गए हर दस कदम पर चेकिंग 200 मीटर के उस रास्ते पर 1000 जवान जिन्हें घूर घूर कर देखना ऐसा लग रहा था कि बेटा आज ये तुम्हारी आखिरी उत्सुकता होगी।
धीरे धीरे उस स्थान पर पहुंचे पांचवीं बार के मेटल डिटेक्टर से चेकिंग का कार्यक्रम चल रहा था तभी मित्र की बातूनी बेटी ने ज़ोर से आवाज दी "ज़ाहिद अंकल"......................
मेरी तो हालत खराब परंतु कभी कभी साथ देने वाला मेरा भाग्य उस वक्त क्लिक कर गया उस रास्ते पर किसी ऐसी रेजिमेंट के जवान थे जो नाम से मुझे पहचान ना सके।मेरा मित्र भी परिस्थितियों को देख ही रहा था इसलिए उस बच्ची को गोद में लेकर कान में समझाया कि सिर्फ अंकल बोलना बच्ची जो भी समझी पर मेरा नाम नहीं लिया फिर उस अस्थायी मन्दिर पहुंचे मित्र के परिवार ने पूजा अर्चना की और मैने अपनी उत्सुकता को शान्त किया।
अँधेरा होते ही यह तय किया कि रात्रि विश्राम यहीं करते हैं और फिर हमें भारत के बहुत बड़े व्यापारिक घराने का धर्मशाला मिला "बिड़ला धर्मशाला"
निश्चित ही कमरे और साज सज्जा पाँच सितारा होटलों से कम नहीं और दान के नाम पर बहुत कम पैसे देने थे।हमने वहीं रुकने का निर्णय कर लिया।काउंटर पर पहुंचे तो पता चला कि सुरक्षा की दृष्टि से तीर्थ यात्रियों का विवरण रजिस्टर में भरना आवश्यक है।
तभी मेरी दृष्टि एक नोटिस बोर्ड पर पड़ी जिस पर मोटे मोटे अक्षरों में लाल रंग से लिखा था कि
"केवल हिन्दू धर्म स्वावलंबियों के लिए"
मैंने अपने मित्र को इशारे से दिखाया तो वह बोला तुम सामान लेकर अपने कमरे में जाओ मै सब भर कर आता हूँ। विश्राम के बाद आकर उसने मुझे सूचित किया कि सुबह यहां से निकलने तक तुम "विमल" हो।
मैं अपने कमरे में रात भर खुद की पहचान छुपाने का कष्टदायक अनुभव करता रहा , अपने ही देश में , सारे परिचय पत्र के बावजूद , लगता जैसे कुछ चोरी कर रहा हूँ और अभी कोई पुलिस वाला आकर पकड़ लेगा।
यह जीवन का इस तरह का पहला अनुभव था कि एक मुसलमान होने की पहचान छुपा कर रात भर चोर बनकर एहसास किया।
अगले दिन जल्दी ही सुर्योदय के साथ हम अयोध्या घूमने निकल गये और "कनक मंदिर ," "हनुमान गढी" , सरयू तट होते हुए हम "राम जानकी मंदिर" पहुँचे।
वहाँ मौजूद ब्राम्हण/पुजारी/गाईड द्वारा एक 15 वीं सदी के लगभग 200 गज के घर को राजा दशरथ का महल बताकर दिखाया जा रहा था।
सीता रसोई लगभग 6×4 फिट की , रानियों का कमरा लगभग 8×8 फिट का , राजा दशरथ का कमरा 10×8 फिट का इत्यादि इत्यादि। लोग श्रृद्धावस हाथ जोड़े दर्शन कर रहे थे और वहाँ की ज़मीन पर रगड़ कर सर पर हाथ फेर रहे थे।
मेरे मन में कौतुहल चालू शुरू हो गया , और सोचने लगा कि इतने बड़े राज्य के राजा का महल इतनी छोटा कैसे हो सकता है कि 6×4 की रसोई , 8×8 का , और 10×8 के कमरे हों और निर्माण बिल्कुल किसी गरीब के पुराने कच्चे घर जैसा।
खैर मैंने ना बोलना उचित समझा ना पूछना , खुद ही चोरों की तरह घूम रहा था और सोच रहा था कि मित्र के परिवार का दर्शन हो और हम यहाँ से वापस चलें।
तभी "राम जनकी मंदिर" के आँगन के कोने में स्थीति एक मंदिर पर मेरी नज़र पड़ी और मैं चौंक गया। मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैं उस मंदिर के पास पहुँचा और आश्चर्य से आँख फाड़े उस मंदिर के ऊपर लिखे मोटे मोटे अक्षरों को देखता रहा , लिखा था
"राम जन्म स्थान मंदिर"
मुझे वहाँ खड़ा होते देख वहाँ का पुजारी भागा आया और प्रसाद की थाली लेकर मेरे सामने खड़ा हो गया और टीका लगाने के लिए हाथ मेरे माथे पर लगाने वाला ही था कि मैंने उसे रोक कर सवाल दाग दिया और हिम्मत करके पूछ लिया
बाबा ? राम जी का दो जन्मस्थान कैसे ? एक तो वह जहाँ बाबरी मस्जिद थी और एक यह मंदिर ?
उसे जवाब देने में ना कोई संकोच हुआ ना डर , वह बोल पड़ा , 500 साल से इसी मंदिर को राम जन्मभूमि मान कर पूजा की जाती रही है , बताईए , राजा दशरथ और कौशिल्या यहाँ इस महल में रहते थे तो राम का जन्म जंगल में कैसे होगा ? गाली देते हुए बाबा बोला
"@#$ ने राजनीति के लिए वहाँ रामजन्मभूमि बना दिया।"
मैंने पूछा फिर तो यहाँ कोई आता ना होगा ना चढ़ावा चढ़ता होगा ? #€€$# गाली देकर बोला सब अब वहीं जाते हैं अंधे।
मैंने उसे ₹50 उसकी प्रसाद की थाली में दिया तो वह खुश हुआ और पूछा कहाँ से आए हो ? मैंने कहा इलाहाबाद से ? और फिर पूछा कि बाबा राजा दशरथ इतने बड़े राजा थे ? राम जी भी इतने बड़े राजा थे वह इतने छोटे से महल में रहते थे ? इतने में तो एक मध्यमवर्ग का आदमी घर बनाता है ?
बाबा थोड़ा दाएँ बाएँ देखा और फिर मुझे बिठाया और बोला कि यह सब काल्पनिक बनाया गया है , "कनक मंदिर" जहाँ राम-सीता रहते थे वह भी काल्पनिक है , हनुमान गढी भी काल्पनिक है , बस सब श्रृद्धा के कारण पूजते हैं।
फिर उसने मुझे जो बात बताई उसको मैंने बहुत लोगों से पूछा और यही बात सही थी क्युँकि बाबा ने प्रमाण देकर कही थी।
बाबा कुछ इस तरह से बोले कि बेटा
••••"आप रामायण का उत्तर कांड पढ़ों" उसमें स्प्ष्ट लिखा है तो कि सरयू शापित नदी है। उसमें स्नान करने का भी पुण्य नहीं मिलता। सरयू की पूजा वर्जित है , आरती वर्जित है।
तो सरयू के वर्जित होने का कारण है।
यह सर्वविदित है कि भगवान रामचंद्र जी ने अपने तीनों भाइयों के साथ सरयू में जल समाधि लेकर ही अपनी इहलीला समाप्त की थी , और उनके साथ ही उस अयोध्या का कण-कण , जीव जंतु कीड़े मकोड़े तक सरयू में समा गये थे और वह अयोध्या खत्म हो गयी थी।
इसलिए शिवजी ने सरयू को श्राप दिया था कि
"हे सरयू ? अब अगर तुम्हारे जल में कोई आचमन भी करेगा तो नर्क का भागीदार होगा। तुम्हारा जल किसी भी पूजा में शामिल नहीं किया जाएगा , तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा। क्योंकि तुम भगवान राम की मृत्यु का कारण बनी हो।"
रामायाण को सर्वप्रथम लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि यह
"भीषण श्राप पाकर सरयू नदी भगवान शिव के चरणों में गिर गई। बोली, प्रभु जो हुआ, वह विधि के विधान के कारण हुआ है। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। तब भगवान शिव ने सरयू से कहा, मैं केवल तुम्हें इतनी छूट देता हूँ कि अगर तुम्हारे जल में कोई स्नान करेगा, तो उसे पाप नहीं लगेगा। हां, उसे पूण्य भी नहीं मिलेगा। पर पूरा श्राप सरयू नदी पर आज भी लागू है।"
आप खुद देख लीजिए कहीं भी यज्ञ होता है, तो उसके लिए सात नदियों का जल लाया जाता है। जिन सात नदियों का जल लाया जाता है, उनमें सरयू शामिल नहीं है। कुंभ, अर्धकुंभ जैसा कोई आयोजन सरयू के किनारे नहीं होता।
अयोध्या में ही जाकर पता कर लीजिए सरयू का जल वहां किसी भी मंदिर की पूजा में शामिल नहीं किया जाता। सभी नदियों की पूजा होती है, सरयू की नहीं होती। ज्ञानवान साधु संत सरयू में जाकर स्नान नहीं करते।
वे लोग अनाड़ी हैं, उन लोगों को हिंदू धर्म का कोई ज्ञान नहीं है, जो लोग सरयू की पूजा आरती करते हैं , उसमें स्नान करते हैं। हिन्दू धर्म की कमान ऐसे ही अनाड़ी और राजनैतिक साधुओं के हाथ में आ गई है जो चिंताजनक है।••
खैर मैं आश्चर्यचकित हुआ चुपचाप वहाँ से इलाहाबाद सकुशल आ गया।
आज सोचता हूँ कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री यह योगी जी कितने अज्ञानी हैं कि उनको कुछ भी पता नहीं और शिव जी द्वारा श्रपित नदी के किनारे दिपावली मना रहे हैं ,सरयू की पूजा कर रहे हैं आरती उतार रहे हैं। योगी जी कम से कम "उत्तर रामायण" ही पढ़ लेते।
👉 यह यात्रा वृतांत बिल्कुल सच्चा है जो मेरे खुद के अनुभव पर आधारित है।
बात 1998-99 के आसपास की है। मेरे एक अभिन्न और पारिवारिक मित्र ने एक दिन मुझसे कहा कि क्युँ ना कल फैजाबाद मैं अपने परिवार के साथ चलूँ ? हम लोग रास्ते में अपना काम कर लेंगे और फैमिली अयोध्या घूम लेगी , शाम को वापस हो जाएँगे।
हमने कहा हाँ ये ठीक रहेगा और हम अगले दिन तड़के कार से मैं मेरा मित्र उनकी धर्मपत्नी और एक 4 साल की बेटी निकल गये।
6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद अयोध्या के बारे में मेरे मन मे एक उत्सुकता पैदा हुई यद्धपि बाबरी मस्जिद के रहते कभी वहाँ जाने का भी विचार नहीं आया। अकेले जाना खतरनाक था पकड़े जाने पर ना जाने कौन कौन सी पूछताछ होती आने का कारण पूछा जाता फिर धाराएँ लगतीं।
रास्ते में व्यापारिक कार्य करने में विलम्ब हो गया और हम शाम 5 बजे अयोध्या पहुंचे पर चुकिं विध्वन्स की धटना को अधिक दिन नहीं हुए थे तो सुरक्षा चकाचक लम्बी लम्बी बन्दूक लेकर जाने कहां कहां से आए काले गोरे जवान एक एक व्यक्ति को घूर घूर रहे थे वहां आकर लगा कि आना उचित नहीं था कहीं मेरे धर्म की पहचान हो गई तो फिर धारा उपधारा इतनी लगेंगी कि अगला पर्यटन संभव नहीं होगा।
शाम हो गयी थी तो मित्र ने यह निर्णय किया कि अभी "रामलला" का दर्शन कर लें कल सुबह जल्दी उठ कर शेष मंदिर देख लेंगे। मैंने सोचा कि मैं वहाँ जाऊँ या ना जाऊँ ? जिस जगह मस्जिद शहीद कर के मंदिर बना दिया गया वहाँ जाकर मैं अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर पाऊँगा या नहीं ? फिर सोचा कि वह स्थान ना देखूं जिसके कारण देश में हजारों हजार जाने गईं तो जाना ही व्यर्थ था।
शाम 7 बजे अन्तिम दर्शन की घोषणा हुई हम सब भी लाइन में लग गए हर दस कदम पर चेकिंग 200 मीटर के उस रास्ते पर 1000 जवान जिन्हें घूर घूर कर देखना ऐसा लग रहा था कि बेटा आज ये तुम्हारी आखिरी उत्सुकता होगी।
धीरे धीरे उस स्थान पर पहुंचे पांचवीं बार के मेटल डिटेक्टर से चेकिंग का कार्यक्रम चल रहा था तभी मित्र की बातूनी बेटी ने ज़ोर से आवाज दी "ज़ाहिद अंकल"......................
मेरी तो हालत खराब परंतु कभी कभी साथ देने वाला मेरा भाग्य उस वक्त क्लिक कर गया उस रास्ते पर किसी ऐसी रेजिमेंट के जवान थे जो नाम से मुझे पहचान ना सके।मेरा मित्र भी परिस्थितियों को देख ही रहा था इसलिए उस बच्ची को गोद में लेकर कान में समझाया कि सिर्फ अंकल बोलना बच्ची जो भी समझी पर मेरा नाम नहीं लिया फिर उस अस्थायी मन्दिर पहुंचे मित्र के परिवार ने पूजा अर्चना की और मैने अपनी उत्सुकता को शान्त किया।
अँधेरा होते ही यह तय किया कि रात्रि विश्राम यहीं करते हैं और फिर हमें भारत के बहुत बड़े व्यापारिक घराने का धर्मशाला मिला "बिड़ला धर्मशाला"
निश्चित ही कमरे और साज सज्जा पाँच सितारा होटलों से कम नहीं और दान के नाम पर बहुत कम पैसे देने थे।हमने वहीं रुकने का निर्णय कर लिया।काउंटर पर पहुंचे तो पता चला कि सुरक्षा की दृष्टि से तीर्थ यात्रियों का विवरण रजिस्टर में भरना आवश्यक है।
तभी मेरी दृष्टि एक नोटिस बोर्ड पर पड़ी जिस पर मोटे मोटे अक्षरों में लाल रंग से लिखा था कि
"केवल हिन्दू धर्म स्वावलंबियों के लिए"
मैंने अपने मित्र को इशारे से दिखाया तो वह बोला तुम सामान लेकर अपने कमरे में जाओ मै सब भर कर आता हूँ। विश्राम के बाद आकर उसने मुझे सूचित किया कि सुबह यहां से निकलने तक तुम "विमल" हो।
मैं अपने कमरे में रात भर खुद की पहचान छुपाने का कष्टदायक अनुभव करता रहा , अपने ही देश में , सारे परिचय पत्र के बावजूद , लगता जैसे कुछ चोरी कर रहा हूँ और अभी कोई पुलिस वाला आकर पकड़ लेगा।
यह जीवन का इस तरह का पहला अनुभव था कि एक मुसलमान होने की पहचान छुपा कर रात भर चोर बनकर एहसास किया।
अगले दिन जल्दी ही सुर्योदय के साथ हम अयोध्या घूमने निकल गये और "कनक मंदिर ," "हनुमान गढी" , सरयू तट होते हुए हम "राम जानकी मंदिर" पहुँचे।
वहाँ मौजूद ब्राम्हण/पुजारी/गाईड द्वारा एक 15 वीं सदी के लगभग 200 गज के घर को राजा दशरथ का महल बताकर दिखाया जा रहा था।
सीता रसोई लगभग 6×4 फिट की , रानियों का कमरा लगभग 8×8 फिट का , राजा दशरथ का कमरा 10×8 फिट का इत्यादि इत्यादि। लोग श्रृद्धावस हाथ जोड़े दर्शन कर रहे थे और वहाँ की ज़मीन पर रगड़ कर सर पर हाथ फेर रहे थे।
मेरे मन में कौतुहल चालू शुरू हो गया , और सोचने लगा कि इतने बड़े राज्य के राजा का महल इतनी छोटा कैसे हो सकता है कि 6×4 की रसोई , 8×8 का , और 10×8 के कमरे हों और निर्माण बिल्कुल किसी गरीब के पुराने कच्चे घर जैसा।
खैर मैंने ना बोलना उचित समझा ना पूछना , खुद ही चोरों की तरह घूम रहा था और सोच रहा था कि मित्र के परिवार का दर्शन हो और हम यहाँ से वापस चलें।
तभी "राम जनकी मंदिर" के आँगन के कोने में स्थीति एक मंदिर पर मेरी नज़र पड़ी और मैं चौंक गया। मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैं उस मंदिर के पास पहुँचा और आश्चर्य से आँख फाड़े उस मंदिर के ऊपर लिखे मोटे मोटे अक्षरों को देखता रहा , लिखा था
"राम जन्म स्थान मंदिर"
मुझे वहाँ खड़ा होते देख वहाँ का पुजारी भागा आया और प्रसाद की थाली लेकर मेरे सामने खड़ा हो गया और टीका लगाने के लिए हाथ मेरे माथे पर लगाने वाला ही था कि मैंने उसे रोक कर सवाल दाग दिया और हिम्मत करके पूछ लिया
बाबा ? राम जी का दो जन्मस्थान कैसे ? एक तो वह जहाँ बाबरी मस्जिद थी और एक यह मंदिर ?
उसे जवाब देने में ना कोई संकोच हुआ ना डर , वह बोल पड़ा , 500 साल से इसी मंदिर को राम जन्मभूमि मान कर पूजा की जाती रही है , बताईए , राजा दशरथ और कौशिल्या यहाँ इस महल में रहते थे तो राम का जन्म जंगल में कैसे होगा ? गाली देते हुए बाबा बोला
"@#$ ने राजनीति के लिए वहाँ रामजन्मभूमि बना दिया।"
मैंने पूछा फिर तो यहाँ कोई आता ना होगा ना चढ़ावा चढ़ता होगा ? #€€$# गाली देकर बोला सब अब वहीं जाते हैं अंधे।
मैंने उसे ₹50 उसकी प्रसाद की थाली में दिया तो वह खुश हुआ और पूछा कहाँ से आए हो ? मैंने कहा इलाहाबाद से ? और फिर पूछा कि बाबा राजा दशरथ इतने बड़े राजा थे ? राम जी भी इतने बड़े राजा थे वह इतने छोटे से महल में रहते थे ? इतने में तो एक मध्यमवर्ग का आदमी घर बनाता है ?
बाबा थोड़ा दाएँ बाएँ देखा और फिर मुझे बिठाया और बोला कि यह सब काल्पनिक बनाया गया है , "कनक मंदिर" जहाँ राम-सीता रहते थे वह भी काल्पनिक है , हनुमान गढी भी काल्पनिक है , बस सब श्रृद्धा के कारण पूजते हैं।
फिर उसने मुझे जो बात बताई उसको मैंने बहुत लोगों से पूछा और यही बात सही थी क्युँकि बाबा ने प्रमाण देकर कही थी।
बाबा कुछ इस तरह से बोले कि बेटा
••••"आप रामायण का उत्तर कांड पढ़ों" उसमें स्प्ष्ट लिखा है तो कि सरयू शापित नदी है। उसमें स्नान करने का भी पुण्य नहीं मिलता। सरयू की पूजा वर्जित है , आरती वर्जित है।
तो सरयू के वर्जित होने का कारण है।
यह सर्वविदित है कि भगवान रामचंद्र जी ने अपने तीनों भाइयों के साथ सरयू में जल समाधि लेकर ही अपनी इहलीला समाप्त की थी , और उनके साथ ही उस अयोध्या का कण-कण , जीव जंतु कीड़े मकोड़े तक सरयू में समा गये थे और वह अयोध्या खत्म हो गयी थी।
इसलिए शिवजी ने सरयू को श्राप दिया था कि
"हे सरयू ? अब अगर तुम्हारे जल में कोई आचमन भी करेगा तो नर्क का भागीदार होगा। तुम्हारा जल किसी भी पूजा में शामिल नहीं किया जाएगा , तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा। क्योंकि तुम भगवान राम की मृत्यु का कारण बनी हो।"
रामायाण को सर्वप्रथम लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि यह
"भीषण श्राप पाकर सरयू नदी भगवान शिव के चरणों में गिर गई। बोली, प्रभु जो हुआ, वह विधि के विधान के कारण हुआ है। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। तब भगवान शिव ने सरयू से कहा, मैं केवल तुम्हें इतनी छूट देता हूँ कि अगर तुम्हारे जल में कोई स्नान करेगा, तो उसे पाप नहीं लगेगा। हां, उसे पूण्य भी नहीं मिलेगा। पर पूरा श्राप सरयू नदी पर आज भी लागू है।"
आप खुद देख लीजिए कहीं भी यज्ञ होता है, तो उसके लिए सात नदियों का जल लाया जाता है। जिन सात नदियों का जल लाया जाता है, उनमें सरयू शामिल नहीं है। कुंभ, अर्धकुंभ जैसा कोई आयोजन सरयू के किनारे नहीं होता।
अयोध्या में ही जाकर पता कर लीजिए सरयू का जल वहां किसी भी मंदिर की पूजा में शामिल नहीं किया जाता। सभी नदियों की पूजा होती है, सरयू की नहीं होती। ज्ञानवान साधु संत सरयू में जाकर स्नान नहीं करते।
वे लोग अनाड़ी हैं, उन लोगों को हिंदू धर्म का कोई ज्ञान नहीं है, जो लोग सरयू की पूजा आरती करते हैं , उसमें स्नान करते हैं। हिन्दू धर्म की कमान ऐसे ही अनाड़ी और राजनैतिक साधुओं के हाथ में आ गई है जो चिंताजनक है।••
खैर मैं आश्चर्यचकित हुआ चुपचाप वहाँ से इलाहाबाद सकुशल आ गया।
आज सोचता हूँ कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री यह योगी जी कितने अज्ञानी हैं कि उनको कुछ भी पता नहीं और शिव जी द्वारा श्रपित नदी के किनारे दिपावली मना रहे हैं ,सरयू की पूजा कर रहे हैं आरती उतार रहे हैं। योगी जी कम से कम "उत्तर रामायण" ही पढ़ लेते।
👉 यह यात्रा वृतांत बिल्कुल सच्चा है जो मेरे खुद के अनुभव पर आधारित है।
सरयू की महिमा
ReplyDeleteअयोध्या में स्थित सरयू जी में स्नान करने से कलिकाल के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं अब क्यूं अयोध्या में ही सरयू स्नान से पाप नष्ट हो जाते हैं इसका उत्तर है । अयोध्या अपने आप में पूर्ण ब्रम्ह है और सगुण रूप श्री सरयू जी हैं । यह मृत्यु लोक में नही है अयोध्या भगवान् विष्णु के चक्र पे बसी है ।
अयोध्या च पूर्ण ब्रम्ह सरयू सगुणन पुमान तन्नि बासी जगन्नाथम सत्यं सत्यं बदम्यहम।
अयोध्या में रहने वाले भगवान् विष्णु के तुल्य हैं । चुकी अयोध्या ब्रम्ह स्वरुप होने के कारण इनको ब्रम्ह स्वरूपिणी कहा गया । सरयू का तात्पर्य स से सीता रा से राम जू इसलिए सीता राम जू द्रव रूप में होके भक्त के भावों से इस जल को सीता राम जू का सगुण रूप माना गया है । जैसा की कहा गया है –
सरयू सगुणन पुमान
इसलिए धर्मावलम्बी सरयू जल से कुल्ला नही करते. सरयू जल से कुल्ला करने वालों की गति नही होती । भगवान् श्री राम जी का श्री मुख बचन है ।
जन्मभूमि मम पूरी सुहावनि,
उत्तर दिशि सरयू बह पावनि।
यह शब्द भी स्पस्ट करता है की सरयू माता का महात्म्य अयोध्या में सही स्थित सरयू से सम्बन्ध रखता है । आगे भगवान् राम फिर कहते हैं कि यहाँ स्नान करने वाले मेरा सायुज्य पाते हैं।
जा मज्जन ते विनाहि प्रयाशा
मम समीप नर पावहि वासा।
श्री अयोध्या में स्थित सरयू मैया में स्नान करने से भगवान् श्री राम के समीप रहने का अधिकारी हो जाता है । इसीलिए श्री गोस्वामी तुलसी दास जी श्री अयोध्या और सरयू मैया का अलग अलग बर्णन नही किये । एक ही चौपाई में अयोध्या और सरयू के महात्म्य का वर्णन किया जैसा की मानस में मिलता है ।
बंदउ अवध पूरी अति पावनि,
सरयू सरिकलि कलुष नसावहि।
तात्पर्य कि अयोध्या में ही स्थित सरयू कलिकाल के पाप को नष्ट करने वाली हैं । इनके महात्म्य के विषय में अन्यान्य ग्रंथों में जो मिलता है उस महात्म्य को बताने की प्रयास कर रहा हूँ ।
मन्वन्तर सहस्त्रेस्तु काशी वासेशु जद फलं
तत फलं समवाप्नोति सरयू दर्शने कृते।
चारो युग जब 71 बार बीत जाता है तब एक मन्वंतर होता है इस प्रकार एक हजार मन्वंतर काशी में वास कीजिये गंगा में स्नान करके विश्वनाथ में जल चढाते हुए 1000 मन्वंतर में जो फल आपको प्राप्त होगा वह अयोध्या में सरयू मैया के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है ।
मथुरायाम कल्प मेकं बसते मानवो यदि
तत फलं समवाप्नोति सरयू दर्शने कृते।
मथुरा में 1 कल्प यानी 4 अरब बत्तीस करोड़ मनुष्य के दिन से जब बीत जाता है तब एक कल्प होता है । 1 कल्प मथुरा में वास करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल अयोध्या में सरयू मैया के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है । यह है अयोध्या में सरयू मैया का महात्म्य
तुलसी दास जी ने भी लिखा है-
कोटि कल्प काशी बसे मथुरा कल्प हजार।
एक निमिष सरयू बसे तुले न तुलसी दास।।
तुलसीदास जी को उपरोक्त प्रमाण कम लगा इसलिए इन्होने अपने ग्रन्थ में सरयू महात्म्य को और भी विस्तृत रूप से बर्णन किया है ।