मौसम चुनाव में हरिवंश राय बच्चन की कविता से बीजेपी को इतनी परहेज क्यो है
मौसम चुनाव के फिर आ गये हैं, संभव है कि हर मोड पर कोई ना कोई आपको मिल जाए, जो आपको अहसास दिलाने लगे कि "आप हिन्दु हो " "आप मुसलमान हो"
मेरी सलाह है कि इस पूरे चुनावी मौसम के दौरान, जब भी घर से निकलें, हरिवंश राय बच्चन की यह कविता, पढकर निकलें, यह आपको अहसास दिलाती रहेगी कि "आप इन्सान हो" !
ना दिवाली होती,
और ना पटाखे बजते,
ना ईद की अलामत,
ना बकरे शहीद होते !
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता,
काश कोई धर्म ना होता,
काश कोई मजहब ना होता !
ना अर्घ्य देते,
ना स्नान होता,
ना मुर्दे बहाए जाते,
ना विसर्जन होता,
जब भी प्यास लगती,
नदियों के पानी पीते,
पेड़ों की छाँव होती,
नदियों का गर्जन होता !
ना भगवानों की लीला होती,
ना अवतारों,का नाटक होता,
ना देशों की सीमा होती,
ना दिलों का फाटक होता !
ना कोई झूठा काजी होता,
ना लफंगा साधु होता,
ईन्सानियत के दरबार मे,
सबका भला होता !
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता,
काश कोई धर्म ना होता,
काश कोई मजहब ना होता !
कोई मस्जिद ना होती,
कोई मंदिर ना होता,
कोई दलित ना होता,
कोई काफ़िर ना होता !
कोई बेबस ना होता,
कोई बेघर ना होता ,
किसी के दर्द से,
कोई बेखबर ना होता !
ना ही गीता होती,
और ना कुरान होता,
ना ही अल्लाह होता,
ना भगवान होता !
तुझको जो जख्म होता,
मेरा दिल तड़पता,
ना मैं हिन्दू होता,
ना तू भी मुसलमान होता !
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता......!
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता......!
मेरी सलाह है कि इस पूरे चुनावी मौसम के दौरान, जब भी घर से निकलें, हरिवंश राय बच्चन की यह कविता, पढकर निकलें, यह आपको अहसास दिलाती रहेगी कि "आप इन्सान हो" !
ना दिवाली होती,
और ना पटाखे बजते,
ना ईद की अलामत,
ना बकरे शहीद होते !
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता,
काश कोई धर्म ना होता,
काश कोई मजहब ना होता !
ना अर्घ्य देते,
ना स्नान होता,
ना मुर्दे बहाए जाते,
ना विसर्जन होता,
जब भी प्यास लगती,
नदियों के पानी पीते,
पेड़ों की छाँव होती,
नदियों का गर्जन होता !
ना भगवानों की लीला होती,
ना अवतारों,का नाटक होता,
ना देशों की सीमा होती,
ना दिलों का फाटक होता !
ना कोई झूठा काजी होता,
ना लफंगा साधु होता,
ईन्सानियत के दरबार मे,
सबका भला होता !
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता,
काश कोई धर्म ना होता,
काश कोई मजहब ना होता !
कोई मस्जिद ना होती,
कोई मंदिर ना होता,
कोई दलित ना होता,
कोई काफ़िर ना होता !
कोई बेबस ना होता,
कोई बेघर ना होता ,
किसी के दर्द से,
कोई बेखबर ना होता !
ना ही गीता होती,
और ना कुरान होता,
ना ही अल्लाह होता,
ना भगवान होता !
तुझको जो जख्म होता,
मेरा दिल तड़पता,
ना मैं हिन्दू होता,
ना तू भी मुसलमान होता !
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता......!
तू भी इन्सान होता,
मैं भी इन्सान होता......!
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